बेहतर व संतुलित दुनिया की तस्वीर पेश कर रही है महिलाओं की बढ़ती भागीदारी

Himachal Pradesh राजगढ़

पवन तोमर – राजगढ़

उप मंडल राजगढ़ के तहत राजकीय माध्यमिक स्कुल धमून में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस बड़े ही हर्षौल्लास के साथ मनाया गया | इस अवसर पर स्कूली बच्चो द्वारा एक विशाल रेली का आयोजन किया गया तत्पश्चत “केप्टन सोरभ कालिया सदन “के बच्चो द्वारा अपने विचार प्रकट किये गये | इससे पहले प्रभारी पायल तोमर ने प्राथना सभा में संबोधित करते हुए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं दी इसके पश्चात् उन्होंने कहा की हिन्दू पुराणों में भी नारी को देवता के समान माना गया है और मनु स्मृति में कहा गया है कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात् जहां नारियों की पूजा की जाती है, वहीं देवता का निवास भी होता है। कोई भी घर, परिवार, समाज या देश तभी सशक्त, प्रगतिशील और खुशहाल बन सकता है, जब उसमें रहने वाली महिलाएं हर स्तर पर सशक्त होंगी। भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य में यह बहुत सुखद कहा जा सकता है कि बीते कुछ वर्षों में हर स्तर पर महिलाओं की स्थिति बेहतर हुई है। वे स्वयं तो निरंतर आगे बढ़ ही रही हैं, समाज का नजरिया भी उनके प्रति सकारात्मक हो रहा है।पायल तोमर ने बताया की आप किसी भी कस्बे, छोटे शहर या महानगर में रहते हैं तो एक नजर बाहर की दुनिया पर डालिए। गौर से देखने पर आपको इस दुनिया में एक बड़ा बदलाव दिखाई देगा। सड़कों पर साइकिल, स्कूटी, बाइक और कार चलाती लड़कियां और महिलाएं दिखेंगी। स्कूल कॉलेज में, अस्पतालों में डॉक्टर या नर्स के रूप में महिलाएं होंगी, खेल के मैदान में हॉकी, फुटबॉल, बैडमिंटन, टेनिस और क्रिकेट खेलती लड़कियां नजर आएंगी। आफिसों में, मॉल्स में दुकानों पर सिनेमाघरों में काउंटर पर आपको खूब लड़कियां दिखाई पड़ती हैं। ये तस्वीर बताती है कि अब लड़कियां हर जगह मौजूद हैं। अब इस फ्रेम को 5 या 6 दशक पहले जाकर देखिए। तब आपको लड़कियां गिनी-चुनी जगहों पर ही दिखाई देती थीं। शायद ही आपको कोई लड़की स्कूटी या कार चलाती दिखे। दुकानों के काउंटर पर लड़कियों का बैठना तो किसी अपराध से कम नहीं माना जाता था। ऑफिसों में भी लड़कियों की संख्या अंगुलियों पर गिनी जा सकने लायक थी। यानी पूरे समाज में काम-काजी महिलाओं का प्रतिशत भी बहुत कम ही था। महिलाओं की दुनिया चौके-चूल्हे तक ही सीमित थी। बेशक उस समय गौर न किया गया हो लेकिन पूरे समाज में एक अजीब-सा असंतुलन दिखाई पड़ता था। ऐसा लगता था कि सब कुछ पुरुषों के ही हाथ में है, पुरुषों द्वारा ही संचालित है। स्त्रियों की जगह आपको केवल घर में ही दिखाई पड़ती थी। लेकिन अब पूरा परिदृश्य बदल गया है, तेजी से बदल भी रहा है। अपने जीवन को, परिवार को, देश और दुनिया को बेहतर बनाने के लिए यह संतुलन जरूरी था। अन्यथा यह कैसे संभव है कि आधी आबादी को हाशिए पर रखकर आप बेहतर दुनिया गढ़ने की सोचें। भारतीय समाज में पिछले कुछ वर्षों में आए बदलाव इस बात के गवाह हैं कि स्त्री बदल रही है, अब वह चारदीवारी में कैद रहने के लिए तैयार नहीं है। वह जागरूक हो रही है, अपने अधिकारों के लिए लड़ना सीख रही है, उसे आभास हो रहा है कि किस तरह वह प्रेशर ग्रुप की तरह काम कर सकती है और अपने हक में परिस्थतियों को बदल सकती है। खासकर अपने देश-समाज में अलग-अलग क्षेत्रों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी एक बेहतर और संतुलित दुनिया की तस्वीर पेश करती है।