सद्गुरु के बिना मुक्ति संभव नहीं – गनपत

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सिरमौर न्यूज़ / राजगढ़

निरंकारी भवन राजगढ़ में विशाल सत्संग का आयोजन किया गया। राजगढ़ संगत के शिक्षक रंजित सिंह ने बताया की इस अवसर पर संचालक गनपत राम ने संगत की अध्यक्षता की। इस अवसर पर उन्होंने निरंकारी सद्गुरु माता सुदीक्षा सविन्द्र हरदेव सिंह जी महाराज के प्रवचनों को उपस्थित संगत को सुनाते हुए बताया की भक्त की सोच हमेशा सकारात्मक हुआ करती है। भक्त अपने दिलो को कभी कमजोर नहीं होने देते है ,वो हमेशा ही अपनी प्रीति ,अपनी भक्ति निभाते चले जाते है और खामखा अपने मन को बोझिल नहीं करते है | वो पूर्ण रूप से गुरु के आगे अपने आप को समर्पित करते है। गुरु के बिना गुरुसिख नहीं हो सकता है। बाहर से तो सद्गुरु भी एक साधारण मनुष्य की तरह ही दिखाई देता है ,परन्तु एक साधारण मनुष्य का दिल अपने दुःख के कारण दुखी व् सुख के कारण सुखी होता है | जबकि सद्गुरु का दिल पूर्ण मानव जाती व् मानव मात्र के दुःख को अनुभव करता है ,उन्हें आत्मिक ज्ञान देकर स्थाई सुख (आनन्द ) प्रदान करता है ,जो अपने गुरु का आदेश नहीं मानता है और जो गुरु की आज्ञा से बाहर कर्म करता है ,उसे गुरु सुख कहलाने का कोई हक नहीं होता है। गुरुसिखो की निशानी कोई ऊँचे –ऊँचे बोल बोलना ,धड्लेदार भाषण देना या सुरीले गीत गाना नहीं बल्कि गुरु के आदेश का हर हाल में पालन करना है। कहा की उनके दस –बीस सहारे होते है वह तो डवा डोल ही हो जाते है ,कियुंकी वह फेंसला ही नहीं कर पाते की किसका सहारा ले ,किसका ध्यान करे और किसकी सेवा करे। इसके विपरीत जिनका सहारा केवल एक निराकार सद्गुरु होता है वह कभी नहीं डगमगाता और निरंतर अपने लक्ष्य मोक्ष की और आगे बड़ता जाता है।