लाधि महल क्षेत्र में चल रहे अवेध खनन पर प्रशासन ख़ामोश..

Himachal Pradesh शिलाई

सिरमौर न्यूज़ – शिलाई

शिलाई उपमंडल की रोनहाट उपतहसील में खनन मफ़ियाओ के हौसले बुलंद है। हर रोज़ अवेध खनन सामग्री लेकर दर्जनों वाहन लाधि महल क्षेत्र में देखे जा सकते है। नदी किनारे से जहाँ रेत और बजरी के अवेध खनन का काम ज़ोरों पर है तो वहीं अब सड़क किनारे भी खुदाई करके खनन सामग्री एकत्रित करने में भी ये लोग गुरेज़ नहीं कर रहे है। हैरानी इस बात की भी है की लोकनिर्माण विभाग और पंचायती राज विभाग द्वारा क्षेत्र में करवाए जा रहे विकास कार्यों में भी इसी अवेध खनन की सामग्री का धड़ल्ले से प्रयोग किया जा रहा है।
बिना किसी रोक-टोक के क्षेत्र में लगभग आधा दर्जन सड़कों में गटका बिछाने और उनको पक्का करने के काम में भी इस अवेध खनन की सामग्री का प्रयोग ठेकेदारों द्वारा किया जा रहा है। पंचायती राज में बनाए गए वेंडर भी इसी अवेध खनन की सामग्री को सरकार को बेच कर नियमों की धज्जियाँ उड़ाने के साथ-साथ मोटा मुनाफ़ा कमा रहे है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शिलाई विकास खंड में लगभग तीन दर्जन ऐसे वेंडर पंचायतों में पंजीकृत है जिनके पास ना तो सरकार से खनन की अनुमति है और ना ही सरकार द्वारा लीज़ पर दिया गया कोई खनन पट्टा बावजूद इसके हर एक वेंडर अब तक करोड़ों रूपए के खनन सामग्री के बिल पंचायती राज से कैश करवा चुके है। ऐसे में जहाँ खनन विभाग और अन्य ज़िम्मेवार प्रशासनिक अधिकारीयों की मुस्तेदी पर सवाल उठ रहे है तो वहीं पंचायती राज और लोकनिर्माण विभाग के अफ़सरों की कार्य प्रणाली भी सवालों के घेरे में आ रही है।

शिलाई में हर वर्ष प्रत्येक पंचायत के विकास कार्यों में ख़र्च होती है औसतन 5 करोड़ की धनराशि

प्राप्त जानकारी के अनुसार शिलाई विकास खंड की प्रत्येक पंचायत में सभी मदों को मिलकर औसतन पाँच करोड़ की धनराशि सरकार द्वारा ख़र्च की जा रही है। जिसमें मुख्यतः निर्माण सामग्री जैसे रेत और बजरी का प्रयोग होता है। शिलाई विकास खंड की कुल 29 पंचयतो की अगर बात करें तो इस हिसाब से इन सभी पंचायतों में एक वित्तीय वर्ष में लगभग एक सौ करोड़ से ऊपर की धनराशि ख़र्च की जाती है। जिसमें अगर ज़्यादा ना भी हो तो क़रीब-क़रीब 50 करोड़ रुपए की लागत से रेत और बजरी आदि निर्माण सामग्री के बिलों की अदायगी की जाती है और अधिकतर खनन सामग्री के बिलों में माईनिंग विभाग के एम फ़ॉर्म ग़ायब रहते है। अब बिना एम फ़ॉर्म और एक्स और वाय फ़ॉर्म के अगर खनन सामग्री उपयोग की गई है और लगातार की जा रही है तो ये अवेध खनन करके उपलब्ध की गई है ये बात साफ़ हो जाती है। हर वर्ष जब 50 करोड़ों रुपये की खनन सम्पदा बिना सरकार को रोयल्टी अदा किए महज़ 29 पंचायतों में उपयोग की जा रही है तो इन दर्जनों पंचायती वेंडर या खनन माफ़ियाओं के लिए ये जगह किसी जन्नत से काम नहीं है इस बात को नकारा नहीं जा सकता है।

लोकनिर्माण विभाग के अधिकतर कार्यों में सामग्री अवेध और बिल क्रेशर के

शिलाई में लोकनिर्माण मंडल के अधीन चल रहे अधिकतर कार्यों में अवेध खनन की सामग्री का धड़ल्ले से प्रयोग किया जा रहा है। सड़क में गटका बिछाने से लेकर सड़क किनारे बनाए जाने वाले डंगो और पेरापिट के साथ-साथ विभाग के ठेकेदारों द्वारा भवन निर्माण में भी यहीं घटिया सामग्री प्रयोग की जा रही है। अनेको जगह से घटिया गुणवत्ता वाली निर्माण सामग्री की शिकायतें भी विभाग को पहुँचती है जिन्हें नज़दीक में कोई क्रेशर ना होने का हवाला देकर टाल दिया जाता है। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार प्रशासन की तरफ़ से क्षेत्र में किसी भी माइनिंग स्पॉट का ज़िक्र काग़ज़ों में नहीं किया गया है जबकि हिमाचल और उत्तराखंड की सीमा को विभाजित करने वाली टोंस नदी का जोंग, मीनस क्षेत्र और रोनहाट का भंगाल खड्ड, सियासु,शिलाई का नेड़ा खड्ड तथा सतौन की गिरी नदी खनन माफ़ियों की जन्नत बना हुया है। हर रोज़ इन सभी जगह से दर्जनों छोटे और बड़े वाहन अवेध खनन की सामग्री लेकर बेखोफ गुज़रते हुए देखे जा सकते है और सड़क किनारे लगे रेत और बजरी के बड़े-बड़े ढेर खनन माफ़ियों की उपस्तिथि का सबूत देते है। लिहाज़ा प्रशासन और ज़िम्मेवार अधिकारी सब कुछ देख कर भी आँखे मूँदे बैठे है और प्राकर्तिक सम्पदा को क्षति पहुँचाने वालों के ख़िलाफ़ कोई ठोस कार्यवाही अमल में नहीं लाते है।